Hindi bhasha ka vikas Thursday 21st of November 2024
Hindi Bhasha Ka Vikas हिंदी शब्द मूलतः फ़ारसी का है न कि हिंदी भाषा का। यह ऐसे ही है जैसे बच्चा हमारे घर जन्मे और उसका नामांकरण हमारा पड़ोसी करें। हालांकि कुछ कट्टर हिंदी प्रेमी हिंदी शब्द की उत्पत्ति हिंदी भाषा में ही दिखाने की कोशिश की है। hindi ka vikas kaise huya hoga, hindi ka vikas desh ka vikas, hindi bhasha ka arth, bhasha ke kitne roop hote hain, hindi bhasha ka mahatva, bhasha ka swaroop.
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हिंदी विश्व की लगभग 3000 भाषाओं में से एक है।
आकृति या रूप के आधार पर हिंदी वियोगात्मक या विशलिस्ट भाषा है। भाषा परिवार के आधार पर हिंदी भारोपीय परिवार की भाषा है। भारत में 4 भाषा परिवार- भारोपीय, द्रविड़, ऑस्ट्रिक व चीनी तिब्बती मिलते हैं। भारत में बोलने वालों के प्रतिशत के आधार पर भारोपीय परिवार सबसे बड़ा भाषा परिवार है।
हिंदी भारोपीय के भारतीय ईरानी शाखा के भारतीय आर्य उपशाखा की एक भाषा है।
हिंदी की आदि जननी संस्कृत है। संस्कृत पाली, प्राकृतिक भाषा से होती हुई अपभ्रंश तक पहुंचती है। फिर अपभ्रंश से गुजरती हुई प्राचीन/ प्रारंभिक हिंदी का रूप लेती है। सामान्यता हिंदी भाषा के इतिहास का आरंभ अपभ्रंश से माना जाता है।
हिन्दी का विकास क्रम- संस्कृत→ पालि→ प्राकृत→ अपभ्रंश→ अवहट्ट→ प्राचीन / प्रारम्भिक हिन्दी
अपभ्रंश भाषा का विकास 500 ईसवी से लेकर 1000 ईस्वी के मध्य हुआ और इसमें साहित्य का आरंभ आठवीं सदी से हुआ, जो 13वीं सदी तक जारी रहा। अपभ्रंश का शाब्दिक अर्थ पतन होता है किंतु अपभ्रंश साहित्य से अभीष्ट है- प्राकृत भाषा से विकसित भाषा विशेष का साहित्य।
अवहट्ट अपभ्रष्ट शब्द का विकृत रूप है। इसे अपभ्रंश का अपभ्रंश या परवर्ती अपभ्रंश कह सकते हैं। अवहट्ट अपभ्रंश और आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के बीच की संक्रमण कालीन भाषा है। Hindi bhasha ka vikas
हिंदी शब्द की व्युत्पत्ति भारत के उत्तर पश्चिम में परवहमान सिंधु नदी से संबंधित है। विदित है कि अधिकांश विदेशी यात्री और आक्रांता उत्तर-पश्चिम सिंह द्वार से ही भारत आए। भारत में आने वाले इन विदेशियों ने जिस देश के दर्शन किये वह सिंधु का देश था। ईरान (फारस) के साथ भारत के बहुत प्राचीन काल से ही संबंध थे और ईरानी "सिंधु" को "हिंदु" कहते थे। (सिंधु→हिंदु, स का ह में तथा ध क द में परिवर्तन- पह्लवी भाषा प्रवृति के अनुसार ध्वनि परिवर्तन) । "हिंदु" से हिंद बना और फिर हिंद में फारसी भाषा के संबंध कारक प्रत्यय लगने से हिंदी बन गया। हिंदी का अर्थ है- "हिंद का" । इस प्रकार हिंदी शब्द की उत्पत्ति हिंद देश के निवासी यों के अर्थ में हुई। आगे चलकर यह शब्द "हिंदी की भाषा" के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा। Hindi bhasha ka vikas
उपर्युक्त बातों से तीन बातें सामने आती है-
१- हिंदी शब्द का विकास कई चरणों में हुआ।
सिंधु → हिन्दु → हिन्द +ई → हिंदी।
२-हिंदी शब्द मूलतः फारसी का है ना कि हिंदी भाषा का। यह ऐसे ही है जैसे बच्चा हमारे घर जन्मे और उसका नामकरण हमारा पड़ोसी करें। हालांकि कुछ कट्टर हिंदी प्रेमी हिंदी शब्द की व्युत्पत्ति हिंदी भाषा में ही दिखाने की कोशिश की है,जैसे हिन् ( हनन करने वाला)+ दु (दुष्ट)= हिंदु अर्थात दुष्टों का हनन करने वाला। हिंदू और उन लोगों की भाषा हिंदी। चुूकी इन विद ब्युतपत्तियों में प्रमाण कम अनुमान अधिक है इसलिए सामान्यता इसे स्वीकारा नहीं जाता। Hindi bhasha ka vikas
३-हिंदी शब्द के दो अर्थ है-"हिंद देश के निवासी" यथा (हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा) और हिंद की भाषा। हां यह बात अलग है कि अब यह शब्द इन दो आरंभिक अर्थों से पृथक हो गया है। इस देश के निवासियों को अब हिंदी नहीं कहता बल्कि भारतवासी हिंदुस्तानी आदि कहते हैं। Hindi bhasha ka vikas
मध्यकाल में हिंदी का स्वरूप स्पष्ट हो गया और उसकी प्रमुख बोलियां विकसित हो गई। इस काल में भाषा के तीन रूप निखर कर सामने आए- व्रज भाषा, अवधी व खड़ी बोली। ब्रज भाषा और अवधि का अत्यधिक साहित्यिक विकास हुआ तथा तत्कालीन ब्रजभाषा साहित्य को कुछ देशी राज्यों का संरक्षण भी प्राप्त हुआ। इनके अतिरिक्त मध्यकाल में खड़ी बोली के मिश्रित रूप का साहित्य में प्रयोग होता रहा। इसी खड़ी बोली का 14वीं सदी में दक्षिण में प्रवेश हुआ। अतः वहां इसका साहित्य में अधिक प्रयोग हुआ। 18 वीं सदी में खड़ी बोली को मुसलमान शासकों का संरक्षण मिला तथा इसके विकास को नई दिशा मिली। Hindi bhasha ka vikas
हिंदी के मध्यकाल में मध्य देश की महान भाषा परंपरा के उत्तरदायित्व का पूरा निर्वाह ब्रजभाषा ने किया। यह अपने समय की परिनिष्ठित व उच्च कोटि की साहित्यिक भाषा थी जिस को गौरवान्वित करने का सर्वाधिक श्रेय हिंदी के कृष्ण भक्त कवियों को है। Hindi bhasha ka vikas
अवधी को साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय सूफी /प्रेम मार्गी कवियों को है। कुत्तवन, आलम,जायसी, मंझन, उस्मान, नूर मोहम्मद, कासिम शाह,सेख निसार, अली शाह आदि सूफी कवियों ने अवधि को साहित्यिक गरिमा प्रदान की। इन में सब से प्रमुख जायसी थे। अवधी को राम भक्त कवियों ने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया, विशेषकर तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना बैसवाडी अवधि में कर अवधी भाषा को जिस साहित्यिक ऊंचाई पर पहुंचाया वह अतुलनीय है। Hindi bhasha ka vikas
मध्य काल में खड़ी बोली का मुख्य केंद्र उत्तर से बदलकर दक्कन में हो गया। इस प्रकार मध्यकाल में खड़ी बोली के दो रूप हो गए - उत्तरी हिंदी व दककनी हिंदी। खड़ी बोली का मध्यकालीन रूप कबीर, नानक, दादू, मलूकदास, रज्जब आदि संतो, गंग की चंद छंद वर्णन की महिमा, रहीम के मदनाष्टक, आलम के सुदामा चरित, जटमल की गोरा बादल की कथा, वली, सौदा,इंसा ,नजीर आदि उर्दू के कवियों आदि में मिलता है। Hindi bhasha ka vikas
हिंदी के आधुनिक काल तक आते-आते व्रज भाषा जन भाषा से काफी दूर हट चुकी थी और अवधि ने तो बहुत पहले से ही साहित्य से मुंह मोड़ लिया था। उन्नीसवीं सदी के मध्य तक अंग्रेजी सत्ता का महत्तम विस्तार भारत में हो चुका था। इस राजनीतिक परिवर्तन का प्रभाव मध्य देश की भाषा हिंदी पर भी पड़ा। नवीन राजनीतिक परिस्थितियों ने खड़ी बोली को प्रोत्साहन प्रदान किया। जब ब्रजभाषा और अवधि का साहित्य रूप जन भाषा से दूर हो गया तब उनका स्थान खड़ी बोली धीरे धीरे लेने लगी। अंग्रेजी सरकार ने भी इसका प्रयोग आरंभ कर दिया। Hindi bhasha ka vikas
हिंदी के आधुनिक काल में प्रारंभ में एक ओर उर्दू का प्रचार होने और दूसरी ओर काव्य की भाषा व्रज भाषा होने के कारण खड़ी बोली को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ा। 19वीं सदी तक कविता की भाषा ब्रज भाषा और गद्य की भाषा खड़ी बोली रही। बीसवीं सदी के आते-आते खड़ी बोली गद्य पद्य दोनों की साहित्यिक भाषा बन गई। Hindi bhasha ka vikas
इस युग में खड़ी बोली को प्रतिष्ठित करने में विभिन्न धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों ने बड़ी सहायता की। परिणाम स्वरूप खड़ी बोली साहित्य की सर्व प्रमुख भाषा बन गई। Hindi bhasha ka vikas